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गुज़ारिश / अजय सहाब

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<poem>
ये गुज़ारिश है दूर चल दो तुम
इस से पहले कि प्यार कर बैठूं
ख़्वाब आँखों में फिर न आ जाएँ
रात भी बेक़रार कर बैठूं

देख, ऐसा न हो तकल्लुफ़ को
दिल का रिश्ता समझ ले दिल मेरा
इस तरह पास पास रहने से
तुमको अपना समझ ले दिल मेरा
यूँ ही कह दो कि आओगे मिलने
और मैं इंतज़ार कर बैठूं

रोज़ मिलना किसी बहाने से
मेरी आदत कहीं न बन जाए
तुम से जो अनकहा सा रिश्ता है
वो मुहब्बत कहीं न बन जाए
ये समझ कर तुम्हारा आँचल है
आँखों को अश्कबार कर बैठूं

सोच कर ये कि तुम संभालोगे
मैं कहीं बेसबब न गिर जाऊं
ये समझ कर कि तुम समेटोगे
और ज़ियादा न मैं बिखर जाऊं
इस भरोसे में तुम सियोगे इसे
पैरहन तार तार कर बैठूं
</poem>
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