Changes

अज़ाब की लज़्ज़त / शहरयार

48 bytes added, 14:52, 29 सितम्बर 2020
{{KKRachna
|रचनाकार=शहरयार
|अनुवादक=
|संग्रह=शाम होने वाली है / शहरयार
}}
{{KKCatNazm}}<poem>
फिर रेत भरे दस्ताने पहने बच्चों का
 
इक लम्बा जुलूस निकलते देखने वाले हो
 
आँखों को काली लम्बी रात से धो डालो
 
तुम ख़ुशक़िस्मत हो, ऎसे अज़ाब की लज़्ज़त
 
फिर तुम चक्खोगे।
</poem>
Delete, Mover, Reupload, Uploader
17,194
edits