{{KKRachna
|रचनाकार=निदा फ़ाज़ली
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
[[Category:नज़्म]]{{KKCatNazm}}<poem>नज्म बहुत आसान थी पहले<br>घर के आगे<br>पीपल की शाखों से उछल के<br>आते-जाते बच्चों के बस्तों से<br>निकल के<br>रंग बरंगी<br>चिडयों के चेहकार में ढल के<br>नज्म मेरे घर जब आती थी<br>मेरे कलम से जल्दी-जल्दी<br>खुद को पूरा लिख जाती थी,<br>अब सब मंजर बदल चुके हैं<br>छोटे-छोटे चौराहों से<br>चौडे रस्ते निकल चुके हैं<br>बडे-बडे बाजार<br>पुराने गली मुहल्ले निगल चुके हैं<br>नज्म से मुझ तक<br>अब मीलों लंबी दूरी है<br>इन मीलों लंबी दूरी में<br>कहीं अचानक बम फटते हैं<br>कोख में माओं के सोते बच्चे डरते हैं<br>मजहब और सियासत मिलकर<br>नये-नये नारे रटते हैं<br>बहुत से शहरों-बहुत से मुल्कों से अब होकर<br>नज्म मेरे घर जब आती है<br>इतनी ज्यादा थक जाती है<br>मेरी लिखने की टेबिल पर<br>खाली कागज को खाली ही छोड के <br>रुख्ासत हो जाती है<br>और किसी फुटपाथ पे जाकर<br>शहर के सब से बूढे शहरी की पलकों पर<br>आँसू बन कर<br>
सो जाती है।
</poem>