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{{KKRachna
|रचनाकार=फ़िराक़ गोरखपुरी
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
[[Category:ग़ज़ल]]{{KKCatGhazal}}<poem>ये माना ज़िन्दगी है चार दिन कीबहुत होते हैं यारों चार दिन भी
ये माना ज़िन्दगी है चार दिन की<BR>बहुत होते हैं यारों चार दिन भी<BR><BR>खुदा को पा गया वाईज़, मगर है<BR>जरुरत आदमी को आदमी की<BR><BR> मिला हूं मुस्कुरा कर उस से हर बार<BR>मगर आंखों में भी थी कुछ नमी सी<BR><BR> मोहब्बत में कहें क्या हाल दिल का<BR>खुशी ही काम आती है ना गम ही<BR><BR> भरी महफ़िल में हर इक से बचा कर<BR>तेरी आंखों ने मुझसे बात कर ली<BR><BR> लडकपन की अदा है जानलेवा<BR>गजब की छोकरी है हाथ भर की<BR><BR> रकीब-ए-गमजदा अब सब्र कर ले<BR>कभी उस से मेरी भी दोस्ती थी<BR><BR/poem>
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