भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

है तो है (ग़ज़ल) / दीप्ति मिश्र

3 bytes added, 12:38, 3 अक्टूबर 2008
कब कहा मैनें कि वो मिल जाये मुझको, मै उसे
गैर गै़र न हो जाये वो बस इतनी हसरत है तो है
दोस्त बन कर दुष्मनों दुश्मनों-सा वो सताता है मुझे
फ़िर भी उस जालिम पे मरना अपनी फ़ितरत है तो है
Anonymous user