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उर के भाव व्यक्त होते तो, इतना कभी उदार न होता।
अपने व्यवहारों में सचमुच, इतना कभी सुधार न होता।।
-१८ मार्च, १९६२
*‘नव-प्रभात’ में प्रकाशित
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