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अँधियारे की छाया छू ली?
किसके रंग में अनुरंजित हो, अपनी धुन भूल गए, ध्यानी!
तुझ पर करने के लिए कृपा, यह किस का रूप बना दानी? ।।
तू किसके सीने में सिमटा?
माथे का प्यार भरा चुम्बन।
अलकें सुलझाने में उलझीं, अँगुलियाँ शिथिल किसकी? मानी!
तुझ को चुप करते-करते ही, भीगा किसका, आँचल धानी? ।।
तू किसकी गोदी में सोया?
प्रभु से तेरा मंगल माँगा?
किन पुण्यों के प्रतिफल ये क्षण, यह सपना सच जैसा? ज्ञानी!
खुलते ही आँख, छलेगी जो, वह पीड़ा किसने पहचानी? ।।
तू कब तक बैठेगा यों ही?
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