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यो सनातन समुद्रले
हाँस्न कहिल्यै सिक्ने छैन।
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'''[[समुद्र और आदमी / आन्ना स्विरषिन्स्का / सिद्धेश्वर सिंह |इस कविता का हिन्दी अनुवाद पढ्ने के लिए यहाँ क्लिक करेँ ।]]'''
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