भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ताँका / सुधा गुप्ता

No change in size, 09:26, 4 दिसम्बर 2020
बाँस की पोरी
निकम्मी खोखल मैं
बेसुरी , कोरी
तूने फूँक जो भरी
बन गई ‘बाँसुरी’
7
बड़ी सुबह
सूरज मास्टर 'दा’
किरण-छड़ी
ले, आते धमकाते