Changes
398 bytes removed,
09:27, 4 दिसम्बर 2020
तूने अधर धरी
सुरों की धार बही
बाँस की पोरी
निकम्मी, खोखल में
बेसुरी, कोरी
तूने फूँक जो भरी
बन गई ‘बाँसुरी’
कोई न गुन
दौड़ पड़ गोपियाँ
उफनी है कालिन्दी
तेरा ही जादू
दूध पीना भूला है
गैया का छौना
चित्र-से मोर, शुक
कैसा ये किया टोना
गोपी का नेह