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देखती थी उसको अक्सर
बैठी हुई खिड़की से सटकर
टकटकी उसकी बंधी बँधी शून्य पर लच्छे धुंघराले धुएं घुँघराले धुएँ के
स्मृतियों की लट पर
स्मृतियां स्मृतियाँ, जिनसे वह चाहती थी पीछा छुड़ाना
या शायद उनका तकिया लगाना
अदृश्य दीवार उठा गए थे बीच में अपने
छल्ले सिगरेट के
धुएं धुएँ में हम थे खोए
अपनी अलग-अलग दुनिया में
चली गई कब की वह, हारी हुई
बोझे से अपने दुख को दबाए, कहा नहीं उसने
पर गंध गन्ध लग गई मुझको किसी तरह उसकी खामोश ख़ामोश होंठों से, बेमन ही छूटते उन धुएं धुएँ के छल्लों में
एकदम अकेली हूं हूँ मैं अब तो जितनी, रहती थी जब मां माँ के साथ लेकिन वह अंतिम अन्तिम थक्का धुएं धुएँ का
भभका था उसकी चिता से ही
गंध गन्ध जानती हूं हूँ मैं उसकी
उस निचाट अकेलेपन की
फैलता है अब तक फेफड़ों में मेरे
वह धुआं धुआँ सिगरेट का ।
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद " अनामिका'''
</poem>
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