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गैस चेंबर दितीय द्वितीय विश्वयुद्ध मेंया हिटलर का प्रथम प्रयोग नहीं था, शुरुआत तो तभी हो गयी,
जब जंगली रास्तों पर
छुपे हुए फंदे लगाए गये, जंगली जलश्रोतो जलस्रोतों में ज़हर घोला गया, और निवाले में बारूद, भर , रखा गया!
तब से अब तक कितने वनराज कितने गजराज
और कितने झुंडो का सफाया हुआ!
और फिर अगला क्रम नागासाकी हिरोशिमा
और फिर अगला क्रम-कई क़दम कदम आगेयुद्ध और शांति की दहलीजों के पार- न फंदे, न बारूद, न जहरज़हर, न गैस-
जिसके लिए किसी घोषित युद्ध या शांति
की ज़रूरत जरूरत नहीं–
यह तो बस एक मौसमों में घुला हुआ
शून्य में भी दस्तक देता वायरस, -भस्मासुर वंगुल चंगुल में पकड रहा है, मानव भाग रहा है, कोई संदेह नहीं बचा है? कोई प्रश्न नहीं?
सशरीर स्वर्गारोहण का मार्ग महाविनाशक
द्वार है, गानव मानव जाति की बलि बेदी है, भस्मासुर प्रभु की विडम्बना हो सकती है, पर मानवता का विनाश मात्र विनाश,
भस्मासुर का यह पहला दुष्प्रयोग
या प्रथम दुर्घटना हो सकती है
पर अन्तिम अवसर है साथी,
दिशा बदल दो, आओ चलें
अपनी धरती पर, अपने प्रकृति मे
अपने पड़ोसियों के बीच
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