{{KKRachna
|रचनाकार=अज्ञेय
|संग्रह=हरी घास पर क्षण भर / अज्ञेय; सन्नाटे का छन्द / अज्ञेय
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<poem>
जब पपीहे ने पुकारा--- मुझे दीखा---
दो पँखुरियाँ झरीं गुलाब की, तकती पियासी
पिया--से ऊपर झुके उस फ़ूल को अऊठ ज़्यों ओठ ज्यों ओठों तले। मुकुर मे देखा गया हो दृष्य दृश्य पानीदार आँखों के।
हँस दिया मन दर्द से--
’ओ मूढ! तूने अब तलक कुछ नहीं सीखा।’
जब पपीहे ने पुकारा--मुझे दीखा। इलाहाबाद१ अगस्त, १९४८
'''इलाहाबाद, १ अगस्त, १९४८'''
</poem>