1,287 bytes added,
03:25, 5 जनवरी 2021 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
भोर की
भटकी किरन
आ गई
तुमको जगाने
द्वार खोलो
,मत रहो चुप
मुखारविन्द से ,दो
शब्द बोलो।
यह किरन
तेरे हृदय का है उजाला
इस किरन को
आस जैसे तुमने पाला
चूम लो स्मित अधर से
मुँह न मोड़ो
यह तुम्हारे उर की खुशबू
दिल न तोड़ो
यह तुम्हारी ही कृति
अनुभूति यह तुम्हारी
प्राण से भी ज़्यादा प्यारी
इसे हृदय में बसालो
भटकी निकलकर गोद से
गले से इसको लगालो।
'''मनप्राण में इसको बसालो'''
बहुत कुछ करना तुम्हें
कुछ तो बोलो
सागर- सा मन तुम्हारा
उठो उसके द्वार खोलो
</poem>