828 bytes added,
18:03, 17 जनवरी 2021
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=कुमुद बंसल
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
सुगंध बन रम जाना है चमन में
पक्षी बन उड़ जाना है गगन में
लहर बन समा जाना है सागर में
जल बन भर जाना है गागर में
हवा बन इठलाना है आज इधर-उधर
तितली बन मंडराना है आज फूल पर
क्योंकि
आज मानस ने देह को छोड़ दिया
इसके हर बंधन को तोड़ दिया
हर कारा को फोड़ दिया
हर श्वास को भीतर जोड़ दिया।
-0-
</poem>