भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
और कोल्हू - बैल के तन में अभी
ज़िन्दा हिरन - मन,
चौकड़ी भरते ख़यालों को सँजोए
एक आँगनहीन घर बेनाम जी लेंगे !
आँगन - गेह चौपालें - कथाएँ
नागफन ब्योहार अन्धियारा घुटन
गूँगी बिथाएँ ,
देखने - भर को बड़प्पन हम बड़ों का
हर गली कूचा सड़क बदनाम जी लेंगे !
टूटकर उम्मीद जुड़ने की लिए
पल - छिन बिखरना,
ज़िन्दगी की हर किरच फिर भी समेटे
बेमज़ा - बेसूद सुबहो - शाम जी लेंगे !
</poem>