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उड़ान शेष है / कविता भट्ट

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'''कुछ ही डग भरे, अभी तो उड़ान शेष है।'''
प्रत्यक्ष युग ने देखा, अनुमान शेष है।
 
जो बहा चले संग में, तुम पवन निराली।
सुगन्धित समीर का वह अभियान शेष है।
 
रवि-रश्मि बाँध पाए, नहीं ऐसी गठरी।
सतरंगी इन्द्रधनुष का वितान शेष है।
 
सो ना सकोगे तुम भी, मैं न सो सकी तो।
अभी मेरा मानदेय,अनुदान शेष है।
 
संकल्पों की लेखनी अब नहीं थकेगी।