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मन-अम्बर / अनिता मंडा

2,113 bytes added, 04:34, 3 फ़रवरी 2021
[[Category: ताँका]]
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1.बिछी हुई हैरुपहली चादरझील के तन पर।प्यार की ऊष्माछाई कण-कण परआओ हे दिनकर !2.सुलग उठाचौदहवीं का चाँदफिर से ख़ाक होगा।दिल के छालेसिसकेंगे फिर सेकब ये पाक होगा।3.पावस ऋतुझरा श्याम आँचलधुल गए शिक़वे।खुले नभ मेंसतरंगा आँचलउग गए बिरवे।4.तेरी यादों केपहरे मन परधुंधलाते नहीं हैं।पलकों तलेसरकते हैं ख़्वाबअकुलाते नहीं हैं।5.नदी के तीरसाथ-साथ बहतेअजनबी रहते।मन की पीरकिसे हम कहतेचुप रह सहते।6.हल्दी कुंकुमरंगे हैं हमतुमएक-दूजे के रंग।कोरा है मनलिख दिया अर्पणछूटे न यह रंग।7.भोर ने जबउठाई हैं पलकेंहो गई दुपहरीबदला रंगचमचमाने लगीसुनहरी चूनरी।8हमसफ़रकरवां है ग़मों काशुक्रिया अपनों कामन में मेरेनहीं अकेलापनमेला है सपनों का।9बढ़ती आएँसागर की लहरेंकिरणों से मिलने,भूरे से वस्त्ररख दिए धुलनेभोर ने उतारके।10भोर है आईपूरब में लालिमाकिरणों ने फैलाईधीरे से हिलीओस नहाई कलीमँडराई तितली।
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