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‘ये फूल नहीं’ की शीर्षकहीन भूमिका / अजित कुमार
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13:18, 11 अक्टूबर 2008
बहुत-सी बातें मन में मथती-उफनती रहती हैं । उनमें से कुछ यहाँ झाग की तरह उठ आई हैं, कुछ देर में बुझ या मिट जाएँगी—झाग की तरह । सिर्फ़ अफ़सोस रह जाएगा कि इन्हें क्यों बाहर आने दिया ।
'''अजितकुमार
किरोड़ीमल कालेज, दिल्ली
अजितकुमार
अनिल जनविजय
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