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प्रिय महोदय / महोदया !
विनम्र निवेदन है कि कविताओं में अगर किन्हीं पंक्तियों को गैप देकर जोड़ा गया है तो अपने मन से उस गैप को न हटाएँ। कवि ने ख़ुद जैसे कविता की कल्पना की है, वैसे ही उस कविता को हम कोश में जोड़ते हैं। आप अपने मन से कविताओं में बदलाव न करें।
आपने केदारनाथ अग्रवाल की कविता ’जीने का दुख’ में इस तरह का बदलाव किया था। मैंने उस बदलाव को निरस्त कर दिया है।
सादर
अनिल जनविजय
08 मार्च 2021
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