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01:33, 1 अप्रैल 2021 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=कविता भट्ट
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<poem>
22
जागी लगन,
सागर से मिलन
नदी मगन।
23
जड़ जगत
नदिया-सा जीवन
सदा चेतन।
24
है गतिशील
समाधिस्थ चलती
कोटिशः मील।
25
नदी महान-
सिखाये संघर्ष में
आनंदगान।
26
विनम्र साध्वी-
नभ से धरा तक
तू ऋषिकन्या!
27
मुक्त तरंगा-
जग तारणहार
पावन गंगा।
28
ओ जगदम्बे!
भव बाधा बहा दो
जाह्नवी गंगे।
29
गुंजायमान
सधे सुर नदी के
संगीत जान ।
30
'''मैं हूँ नदिया'''
'''तुम समुद्रशिला'''
'''फिर भी पाना ।'''
31
चरण चूमे
प्यासी धरा नदी के
मगन घूमे ।
32
द्रवित होओ
कृतघ्न मत ठनो
नदी- से बनो ।
</poem>