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न ये अन्धेरे मुझे निगलते / राजेन्द्र राजन (गीतकार)
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22:57, 16 अप्रैल 2021
शहर में हूँ अजनबी के जैसे, किसी तरह दिन बिता रहा हूँ
घने अन्धेरों के बीच घिरकर, यूँ मन रही है मेरी दीवाली
वो जितनी क़समें थी खाई हमने, मैं उतने दीपक जला रहा
हूँ ।
हूँ।
</poem>
अनिल जनविजय
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