Changes

शहर में हूँ अजनबी के जैसे, किसी तरह दिन बिता रहा हूँ
घने अन्धेरों के बीच घिरकर, यूँ मन रही है मेरी दीवाली
वो जितनी क़समें थी खाई हमने, मैं उतने दीपक जला रहा हूँ ।हूँ।
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
54,282
edits