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<poem>
न ये अन्धेरे मुझे निगलते, जो चान्द भू पर उतार लेता
जो था बिछुड़ना बिछड़ना वहाँ बिछुड़तेबिछड़ते, जहाँ मैं ख़ुद को पुकार लेता
जो पास रहकर भी दूर थे हम, कहीं समर्पण में कुछ कमी थी
तुम अपना चेहरा निखार लेतीं, मैं आईने को सँवार लेता
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