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तना-तनी में / रामकिशोर दाहिया

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तना-तनी में

तना-तनी में
हम हो जाते
नए ब्लेड की धार
घायल खुद का
घर-आँगन है
प्रेम-सना-व्यवहार

खून जलाकर
कम कर लेते
आगी अपने सीने की
उस पर भी
हम करें कल्पना
सद्भावों में जीने की

नहीं बताते
हमीं अहम के
भोग रहे व्यभिचार

आगि-पानी एक,
डूबती, गुण धर्मों की
लुटिया को
चलो बचालें
उसमें घी है
दादी वाली मिटिया को

काँटे दूर
करेंगे होगा
फूलों का सत्कार

बदल रहे
बातों के चोले
करते दूर हकीकत को
मूठी में
संसार भले हो
मार दिए हम जीवट को

फर्ज हमारे
घुटने टेगें
पाने को अधिकार

टिप्पणी : १.मिटिया- मिट्टी का छोटा बर्तन।

-रामकिशोर दाहिया

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