Changes

'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= रामकिशोर दाहिया }} {{KKCatNavgeet}} <poem> हुए व...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार= रामकिशोर दाहिया
}}
{{KKCatNavgeet}}
<poem>
हुए वनों के डूँठे पेड़
भादों तक
नौतपा बरेदी२
छींदे३ बकरी भेड़

कोदो-कुटकी,
काकुन, तिल को
भूल गई जमुहाई
चुआ अषाढ़
पसीने -जैसा
कुँहकी पड़ी मकाई
अब कातिक के
मूँग-उड़द पर
घन की भौहें टेढ़

कीट विनाशी
दवा किये है
रक्षा के भी सौदे
मोटी इल्ली
निर्भय खाये
तना, पत्तियाँ, पौधे
तुअर खड़ी है
सिर पर लेकर
पीली पत्ती डेढ़

आँखें मूँद रहे
अँखुवाए
घर में बगरे४ बीज
आर्द्रा, मघा,
पूरवा सूखे
घाम तापती तीज
भूखी गाय
चरागन५ खोजें
सूरज देखे मेड़

टिप्प्णी :
१.कुँहकी-अवर्षा के कारण खराब हुआ बीज।
२.बरेदी-चरवाह।
३.छींदे-घेरकर रोकना।
४.बगरे-फैले हुए।
५.चारगन-चारागाह।

-रामकिशोर दाहिया

</poem>