1,031 bytes added,
14:01, 17 अप्रैल 2021 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार= रामकिशोर दाहिया
}}
{{KKCatNavgeet}}
<poem>
कल पुर्जों पर लम्बी घातें
चिन्तन में बचकानी बातें
अहसासों की
छोटी क्षमता
उसके नीचे
नई विषमता
अंकुर नये पुरानी गाँठें
चिन्तन में बचकानी बातें
अधर लटकती
रही मधुरता
घर बैठे मन
भीतर कुढ़ता
नज़रें गिरी बयानी रातें
चिन्तन में बचकानी बातें
मन भर बोझ
उमंगे ढोतीं
जल से दूर
तरंगें होतीं
कहने लगीं कहानी आँतें
चिन्तन में बचकानी बातें
-रामकिशोर दाहिया
</poem>