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Kavita Kosh से
|रचनाकार=जहीर कुरैशी
}}
{{KKCatGhazal}}<poem>वे शायरों की कलम बेज़ुबान कर देंगे
जो मुँह से बोलेगा उसका ‘निदान’ कर देंगे
वे आस्था के सवालों को यूं उठायेंगे
खुदा के नाम तुम्हारा मकान कर देंगे
तुम्हारी ‘चुप’ को समर्थन का नाम दे देंगे
बयान अपना, तुम्हारा बयान कर देंगे
कई मुखौटों में मिलते है उनके शुभचिंतक
तुम्हारे दोस्त, उन्हें सावधान कर देंगे
निरस्त अच्छा-भला ‘संविधान’ कर देंगे
तुम्हें पिलायेंगे कुछ इस तरह धरम-घुट्टी
वे चार दिन में तुम्हें ‘बुद्धिमान’ कर देंगे</poem>