{{KKRachna
|रचनाकार=जहीर कुरैशी
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatGhazal}}<poem>चित्रलिखित मुस्कान सजी है चेहरों पर, <br>मुस्कानों की ?सेल? लगी है चेहरों पर । <br><br>
शहरों में, चेहरों पर भाव नहीं मिलते, <br>भाव-हीनता ही पसरी है चेहरों पर । <br><br>
लोग दूसरों की तुक-तान नहीं सुनते, <br>अपना राग, अपनी डफली है चेहरों पर । <br><br>
दोस्त ठहाकों की भाषा ही भूल गए, <br>एक खोखली हँसी लदी है चेहरों पर । <br><br>
लोगों ने जो भाव छिपाए थे मन में, <br>उन सब भावों की चुगली है चेहरों पर । <br><br>
मीठे पानी वाली नदियाँ सूख गई, <br>खारे पानी की नद्दी है चेहरों पर । <br><br>
एक गैर-मौखिक भाषा है बहुत मुखर, <br>
शब्दों की भाषा गूँगी है चेहरों पर ।
</poem>