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02:38, 22 अप्रैल 2021 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=कविता भट्ट
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<poem>
जितना नभ का असीम विस्तार
'''पिय! तुमसे है कुछ इतना प्यार।'''
पलकों पर रखे रंग-बिरंगे सपने
न थे, किन्तु, अब दिगन्त प्रसार।
तुमने क्षितिज पर इन्द्रधनु- सा
कर डाला सतरंगी सब संसार।
'''मैं तो हिय -सी हूँ जड़ काया में'''
'''रुधिर तुम पिय! चेतन संचार।'''
विशाल परिधि को तुम घेरे हो
दिग-दिगन्त तक तुम आकार।
तुम रवि इस हरीतिमा धरा के
सदियों से देते जीवन-आधार।
-0-
</poem>