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हौसला / सुषमा गुप्ता

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<poem>
टूटे हुए पत्ते ने
शाख से पूछा-
‘क्या करू जतन
जो तू फिर से
अपना ले मुझे
बहुत याद आता है
बहारों में तुझ पे झूलना।’
रूखा-सा जवाब आया-
‘हवा के साथ
कभी शाख से टूटे पत्ते भी
जुड़ा करते हैं
तुझे तो इस मिट्टी में ही
अब है मिलना।’
पत्ता धुन का पक्का
चुपचाप घुला मिट्टी में
जड़ों से तने
तने से शाख में पहुँचा
कि उसे फिर पत्ता बन
इसी शाख से था लिपटना।
कमाल का हौसला था
अदना -से पत्ते का

और कमाल का ही सब्र
उसके हौसले का
लो इंसानों तुम्हें
अब भी रह गया ये सीखना !
'''(उम्मीद का टुकड़ा-संग्रह से )'''

</poem>