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हौसलों की आग / सुषमा गुप्ता

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मैं उजाला हूँ
अँधेरे खा नहीं सकते मुझे
बहुत सदियों से मैं ही अँधेरे
ग्रास करता हूँ।
मुश्किलें तो आती हैं
मुश्किलें तो आएँगी
में कहाँ
प्रकृति के नियम से
इन्कार करता हूँ।
पर एक नियम
विनाश के बाद
सृजन का भी है
अपनी मृत होती रूह में
यूँ जीवन संचार करता हूँ ।
अजर-अमर अजेय
कभी अँधेरे हो नहीं सकते
हथेली पर लिये
दीया हिम्मत
इन्हें आह्वान करता हूँ ।
छिन्न-भिन्‍न कर दूँगा
कण-कण को अँधेरे मैं तेरे
तू देख बस
खुद में मैं कैसी
हौसलों की आग रखता हूँ ।
'''(उम्मीद का टुकड़ा-संग्रह से )'''
</poem>