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न, नहीं मिले बहुत तलाश किये वे रंगजोचाँदनी से महीनऔरसुबह की धूप से नरमहों।जो अपनी सुकुमार आभा सेबिल्कुल वैसी जैसी मेरा जी चाहता है,तुम्हारीएक तस्वीर बना देबिल्कुल वैसी-- जैसी मेरा जी चाहता है !बहुत तलाश किए पर नहीं मिले.वनहीं मिले वे फूलजोअपनी सुगन्धि सेपागल बना दें जो. लबरेज हों शहद सेबिल्कुल:मेरे हृदय की तरहजिन्हें तुम्हें अर्पित कर सकूँबिल्कुल वैसेजैसेअपना हृदय तुम्हें दिया हैबिना किसी शर्त के निर्विकल्प...निष्काम !न, नहीं मिलीबहुत तलाशी पर क्नहीं मिलीवह लौ दीप कीमुझ-सी निष्कम्प ज्योतित होती होजिसके उजाले में तुम्हें देख लूँतुम तक आ जाऊँजैसे खुद अपने उजाले मेंतुम्हें देखती-पहचानती हूँबहुत तलाशा परकुछ नहीं मिलामेरे पास न रंग हैंफूलन लौ दीप की ! सिर्फ़ मैं ख़ुद खड़ी हूँ--अकेलीरंगभरी तूलिका-मैं!शहदीला फूल-मैं ! !; निष्कम्प लौ-मैं ! ! !अपने से अपने में तुम्हें चित्रित करतीखुद को बिन शर्ते और समूचा तुम्हें दे डालने को आतुरअपने उजाल में तुम्हें देखती--चीन्हती--पुलकित होतीतुम तक आती---मैं...
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