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रोदन (श्लोक १ देखि ११) / नरेन्द्रप्रसाद कुमाईँ
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15:26, 30 अप्रैल 2021
मनमा सुखको नूतन क्रन्दन ।
(१०)
लियो पवनले मराली-चाल
सौरभ भारले मंन्द मृदुल,
शीतलताको जल-कण छर्की
आयो संध्या जगमा पल-पल ।
(११)
शीतलतामा एक अदृश्य
मादकताको बास परेथ्यो,
विश्व मानस उन्माद गर्ने
जहाँ एउटा जादू लुके थ्यो ।
</poem>
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