|रचनाकार=रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’}}
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शब्दकोश की सीमाएँ होती हैं। शब्द का वाक्य में प्रयोग-सन्दर्भ, वक्ता, मन: स्थिति, परिस्थिति पर केन्द्रित होता है। रचनाकार का चिन्तन-मनन-मन्थन, अनुभव अर्थ को धार देते हैं। बात केवल सामने बैठे श्रोता या दर्शक की या उस पाठक की है, जिसके लिए हम रच रहे हैं। उसका अनुभव और ग्राह्य शक्ति भी अर्थ के साथ चलती है। कबीर अनपढ़ थे; लेकिन जीवन की पाठशाला का उनका अनुभव वहुत व्यापक था, उनका चिन्तन बहुत गहन था, जो आज भी बड़े-बड़े ज्ञानियों को चकित कर देता है। कवि की भाव-व्यापकता ही उसे आम आदमी से अलग करती है। यदि कहीं उसका निजी दुःख भी है, तो वह इतने व्यापक स्वरूप में उद्घाटित होता है कि हर पाठक को वह अपना दुःख प्रतीत होता है। रसज्ञ काव्य के कितने गहन अर्थ तक पहुँचता है या कौन-से अर्थ को पाठक पकड़ता है, ग्रहण करता है, यह उसकी ग्राह्य-शक्ति और जीवन-दृष्टि पर निर्भर है। यही कारण है कि जब पाठक का अनुभव रचनाकार के अनुभव से और अधिक होता है, तो वह मूल अर्थ से भी और अधिक आगे पहुँच जाता है और यदि पाठक सीमित दायरे में घिरा रहता है, तो वह सृजक द्वारा सम्प्रेषित अर्थ तक नहीं पहुँच सकता है।