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अधरं संस्पृश्यापि(मुक्तक) / कविता भट्ट
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12:27, 5 मई 2021
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|रचनाकार=कविता भट्ट
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<poem>
(
संस्कृतानुवादकः-आचार्यःविशालप्रसादभट्टः
)
अधरं संस्पृश्यापि कण्ठः न कदापि सिञ्चितं शक्तं,
वीरबाला
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