Changes

'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= कविता भट्ट }} {{KKCatGadhwaliRachna}} <poem> अब क्या उ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार= कविता भट्ट
}}
{{KKCatGadhwaliRachna}}
<poem>
अब क्या उसे याद होगा
बस में जब साथ बैठा था

उसने कनखियों से देखा
और अनायास ही तो हाँ

मेरे मन की उर्वरा भूमि पर
उगे सपनों के अनगिन अंकुर

जीवन हमें निकट ले आया,
संग- वर्षों समय बीत गया।

लेकिन हम दोनों मशीन हो,
व्यस्त- देखते रहे वक्त को ।

अब आईना देखकर हूँ सोचती
क्या अब मैं अब सुन्दर नहीं रही

न जाने क्या बदला! नजर या असर
या फिर बुदबुदाता- अब मौन मंजर

काश! चेहरे को चूमती आँखें- लौटा दे
ज़ालिम वक्त, वही लम्बी रातें और बातें।
-0-
</poem>