भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

घर सास के आगे / वचनेश

55 bytes added, 17:42, 7 जून 2021
{{KKRachna
|रचनाकार=वचनेश
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
[[Category:छंद]]
<poem>
घर सास के आगे लजीली बहू रहे घूँघट काढ़े जो आठौ घड़ी।
 
लघु बालकों आगे न खोलती आनन वाणी रहे मुख में ही पड़ी।
 
गति और कहें क्या स्वकन्त के तीर गहे गहे जाती हैं लाज गड़ी।
 
पर नैन नचाके वही कुँजड़े से बिसाहती केला बजार खडी।।
 
-(परिहास, पृ०-३०)वचनेश
</poem>
Delete, Mover, Reupload, Uploader
17,166
edits