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गुज़रा जो साल था / उदय कामत

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गुज़रा जो साल था झूठा हर फ़ाल था
फ़ासला लम्हों में जैसे सालों का था
कुछ मलालों का था कुछ सवालों का था
जैसे रिश्ता न मय से पियालों का था
फिक्रमंदी का उलझे ख्यालों का था
रात को ख़तरा जैसे उजालों का था
गुज़रा जो साल था झूठा हर फ़ाल था
अब नया साल हो कुछ अलग चाल हो
मीठी आवाज़ हो यकता अंदाज़ हो
लब पे ईजाज़ हो नरम अंदाज़ हो
हर गिरफ़्तार के हक़ में परवाज़ हो
राग छेड़े नया मुनफ़रिद साज़ हो
एक नए दौर का फिर से आग़ाज़ हो
अब नया साल हो कुछ अलग चाल हो
सब नए साल में संग होकर चले
कुछ नए मरहले कुछ नए वलवले
कुछ नए हौसले कुछ नए सिलसिले
कुछ नए मसअले कुछ नए आबले
कुछ नए से गिले कुछ नए से सिले
कुछ नए मशगले कुछ नए फ़ैसले
सब नए साल में संग होकर चले
</poem>
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