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14:12, 15 जुलाई 2021 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=दिनेश श्रीवास्तव
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<poem>
सोचता हूँ कि आज कालिदास "मेघदूतम"
लिखते तो क्या लिखते:
सूनी वीथियाँ
सूने उपवन
सूनी नाट्यशालायें
सूने बाज़ार
सूनी आँखें
सूना आकाश
भूखे लोग
लाचार लोग
परेशान लोग
हताश लोग
अपना स्वाभिमान त्याग
भोजन लेने को विवश लोग
न बच्चों की किलकारियाँ
न युवकों के कहकहे
न युवतियों के चोंचले
न वृद्धों के प्रवचन
कुछ अर्थशास्त्री पैसे गिनते
कुछ अर्थशास्त्री हाय हाय करते
कुछ लोग पैसे बटोरते
और कुछ नेता तिलमिलाते
कुछ धर्मगुरु अपने दरबों में दुबके
कुछ ज्ञानी ज्ञान बघारते
बस पुलिस और चिकित्सक
और नगरपालिका के कर्मचारी
आशा का दीप जलाये
कुछ अनुसंधानकर्ता
एक अचीन्हे शत्रु से
जीतने की राह खोजते
कवि चुप।
रचना काल: 15.04.2020
</poem>