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मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूं..हूँतुम मत मेरी मंजिल मंज़िल आसान करो..
हैं फ़ूल फूल रोकते, काटें मुझे चलाते..मरुस्थल, पहाड पहाड़ चलने की चाह बढाते..बढ़ातेसच कहता हूं हूँ जब मुश्किलें ना होती हैं..मेरे पग तब चलने मे में भी शर्माते..मेरे संग चलने लगें हवायें जिससे..तुम पथ के कण-कण को तूफ़ान करो..
मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूं..हूँतुम मत मेरी मंजिल मंज़िल आसान करो..
अंगार अधर पे धर मैं मुस्काया हूं..हूँमैं मर्घट मरघट से ज़िन्दगी बुला के लाया हूं..हूँहूं आंखहूँ आँख-मिचौनी खेल चला किस्मत से..सौ बार म्रत्यु मृत्यु के गले चूम आया हूं..हूँ
है नहीं स्वीकार दया अपनी भी..
तुम मत मुझपर मुझ पर न कोई एह्सान एहसान करो..
मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूं..हूँतुम मत मेरी मंजिल मंज़िल आसान करो..
शर्म श्रम के जल से राह सदा सिंचती है..गती गति की मशाल आंधी मैं ही हंसती हँसती है..शोलो शोलों से ही श्रिंगार शृंगार पथिक का होता है..मंजिल मंज़िल की मांग लहू से ही सजती है..पग में गती गति आती है, छाले छिलने से..तुम पग-पग पर जलती चट्टान धरो..
मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूं..हूँतुम मत मेरी मंजिल मंज़िल आसान करो..
फूलों से जग आसान नहीं होता है..रुकने से पग गतीवान गतिवान नहीं होता है..अवरोध नहीं तो संभव नहीं प्रगती प्रगति भी..है नाश जहां निर्मम जहाँ निर्माण वहीं होता है..मैं बसा सुकून सकूं नव-स्वर्ग “धरा” "धरा" पर जिससे..तुम मेरी हर बस्ती वीरान करो..
मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूं..हूँतुम मत मेरी मंजिल मंज़िल आसान करो..
मैं पन्थी पंथी तूफ़ानों मे में राह बनाता..मेरा दुनिया से केवल इतना नाता..वेह वह मुझे रोकती है अवरोध बिछाकर..मैं ठोकर उसे लगाकर बढ्ता लगा कर बढ़ता जाता..मैं ठुकरा सकूं सकूँ तुम्हें भी हंसकर हँसकर जिससे..तुम मेरा मन-मानस पाशाण पाषाण करो..
मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूं..हूँतुम मत मेरी मंजिल मंज़िल आसान करो..
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