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हर रोज़ शाम चान्द चाँद
मेरे साथी की तरह
ऑफ़िस से निकलते ही
सड़कों पर की
पेड़ों बादलों की
लुका-छिपी
घर वाली अन्धेरी गली
उठ जाती है जुदा होने के नाम पर
और