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Kavita Kosh से
लेकिन
हिम्मत न होती कि उठें
क्योंकि हम जहाँ बैठे थे — बहुत ऊँची सीढ़ी के सिरे पर — पर—
और नीचे झाँक रहे थे, वहाँ पायदान न थे ।
हम वहाँ सीढ़ियाँ चढ़कर नहीं पहुँचे थे ।