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{{KKRachna
|रचनाकार=परवीन शाकिर
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
[[Category:ग़ज़ल]]{{KKCatGhazal}}<poem>तेरी ख़ुश्बू का पता करती है <br>मुझ पे एहसान हवा करती है<br><br>
शब की तन्हाई में अब तो अक्सर <br>गुफ़्तगू तुझ से रहा करती है <br><br>
दिल को उस राह पे चलना ही नहीं <br>जो मुझे तुझ से जुदा करती है <br><br>
ज़िन्दगी मेरी थी लेकिन अब तो <br>तेरे कहने में रहा करती है <br><br>
उस ने देखा ही नहीं वर्ना ये आँख <br>दिल का एहवाल कहा करती है <br><br>
बेनियाज़-ए-काफ़-ए-दरिया अन्गुश्त <br>रेत पर नाम लिखा करती है <br><br>
शाम पड़ते ही किसी शख़्स की याद <br>कूचा-ए-जाँ में सदा करती है <br><br>
मुझ से भी उस का है वैसा ही सुलूक <br>हाल जो तेरा अन करती है <br><br>
दुख हुआ करता है कुछ और बयाँ <br>बात कुछ और हुआ करती है <br><br>
अब्र बरसे तो इनायत उस की <br>शाख़ तो सिर्फ़ दुआ करती है <br><br>
मसला जब भी उठा चिराग़ों का <br>फ़ैसला सिर्फ़ हवा करती है  <br><br/poem>
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