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अडिग संकल्प / कविता भट्ट

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प्रस्तर हो चुकी धरती, कंटक- वन हैं मुस्काते।
क्या मेरे मन - आँगन में कुसुम कोई खिलाएगा।
रंगों ने है संग छोड़ा, तूलिका भी सिसकती है।