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|रचनाकार=रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
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<poem>
106
दुनिया में मेले हैं
पर इन मेलों में
हम बहुत अकेले हैं।
107
सुख से न रहा नाता
दुख परछाई -सा
अब छोड़ नहीं पाता।
108
कोई ना ठौर बचा
फूल जहाँ खिलते
उपवन ना और बचा।
109
जब आप पुकारोगे
हमको ना पाकर
आँसू ही वारोगे।
110
दो कण्ठ भरे होंगे
हिचकी आँसू से
मन- प्राण हरे होंगे।
111
तुम '''आकर मिल जाओ'''
पतझर छाया है
इस दिल में खिल जाओ।
112
तुझको ना भूलेंगे
मन में बस जाओ
जब चाहे छू लेंगे।
</poem>