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ये गूँगा क्यों नहीं होता, मैं बहरा क्यों नहीं होता
सियासत की सतूवत<meaningref>आतंक<meaning/ref>
से सभी ख़ामोश बैठे हैं
अरे अब ख़्वाब में भी शख़्स बहका क्यों नहीं होता
शरहतन<meaningref>खुल्लम खुल्ला<meaning/ref>बन के मुंसिफ़<meaningref>न्यायाधीश<meaning/ref>
फ़ैस्ले सड़कों पे करते हैं
तो उनके फ़ैस्लों पर कोई चर्चा क्यों नहीं होता
ये काली रात लम्बी है इसे तो काटना ही है
अभी से तुम न ये पूछो ‘सवेरा क्यों नहीं होता‘होता
सितारे अपने हिस्से के सभी डूबे हुए हैं क्यों
‘शलभ‘ को बदगुमानी है फ़क़त अपनी उड़ानों पर
तकब्बुर<meaningref>घमंड<meaning/ref>
जो ज़रा करता तो बिखरा क्यों नहीं होता
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