{{KKGlobal}}
{{KKRachna
ये गूँगा  क्यों नहीं  होता, मैं बहरा  क्यों  नहीं होता
सियासत  की सतूवत<meaningref>आतंक<meaning/ref>
से  सभी  ख़ामोश  बैठे  हैं
अरे  अब  ख़्वाब में  भी  शख़्स बहका क्यों नहीं होता
शरहतन<meaningref>खुल्लम खुल्ला<meaning/ref>बन के मुंसिफ़<meaningref>न्यायाधीश<meaning/ref>
फ़ैस्ले सड़कों पे करते हैं
तो  उनके  फ़ैस्लों  पर कोई  चर्चा  क्यों  नहीं होता
 
ये  काली  रात  लम्बी  है  इसे  तो  काटना  ही है
अभी  से  तुम  न  ये पूछो  ‘सवेरा  क्यों नहीं  होता‘होता
सितारे  अपने  हिस्से   के  सभी  डूबे  हुए  हैं  क्यों
‘शलभ‘  को बदगुमानी  है  फ़क़त अपनी  उड़ानों पर
तकब्बुर<meaningref>घमंड<meaning/ref>
जो  ज़रा करता  तो बिखरा क्यों नहीं होता
<poem/>