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[[Category: सेदोका]]
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कुछ न माँगा
माँगी उसकी खुशी
टूटे इन्द्रधनुष
राहुग्रस्त चन्द्रमा।
स्वप्न गहन
अंक में था चन्द्रमा
स्वप्न क्या टूट गया
प्रिय ही रूठ गया।
बज्र शिलाएँ
चढ़ाई भी नुकीली
चढ़ें तो अंगदाह
प्रारब्ध में था लिखा।
मन है एक
दुख सब अलग
चूर चूर सपने
चुभते काँच बन।
पत्थर पूजे
सिर भी टकराया
घायल हुआ माथा
यही अपनी गाथा।
तप्त भाल पे
जड़ दू मैं चुम्बन
हृदय का सितार
मिटें ताप -संताप
अरसे बाद
हुईं नेह बौछार
'''मधुमय संवाद'''
ज्यों कोई मन्त्रोच्चार।
मोती ही मोती
सुगन्ध से भी भरे
स्नेहसिक्त भुजाएँ
कस कण्ठ लगाएँ।
पाखी-से उड़
पहुँच जाते हैं भाव
ढूँढूँ बन महेश।
<poem>
'''25-11-21'''