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14:32, 28 जनवरी 2022 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=रेखा राजवंशी
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<poem>
बच्चों का उत्साहित स्वर
सुनाई दे रहा है निरंतर
भविष्य के सपने बुनना
बात-बात पर हंसना
अलमारी में बंद है
बेटे की कारें,
बन्दूक और सिपाही
बचपन के खिलौने
पंक्तिबद्ध बैठी हैं
बेटी की बार्बी गुड़ियां
रसोईघर सजा है
कमरे के कोने में
उनके लिए
आसान है
सब कुछ छोड़ना
नई जगह से
खुद को जोड़ना
जब मैं देखती हूँ
उनके चमकते चेहरे
हो जाती हूँ
कुछ आश्वस्त
कुछ निश्चिन्त
और चल पड़ती हूँ
कंगारूओं के देश की ओर।
</poem>