970 bytes added,
14:32, 28 जनवरी 2022 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रेखा राजवंशी
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
कर रहे हैं विदा
मित्र और रिश्तेदार
कुछ हमारे लिए खुश हैं
कुछ दुखी
बंट रहा है परिवार
देश की सीमा के परे
समय के भी परे
शायद फिर मिलें न मिलें
मिलें भी तो
आज की तरह न मिलें
और दूरियों में बंट जाएँ
सारे शिकवे, सारी शिकायतें
और मन के गिले
सब कुछ बदल जाए
जाने-आने की परिधि के पार
कांगारूं के देश में जाने कैसा हो संसार।
</poem>