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<poem>
कर रहे हैं विदा
मित्र और रिश्तेदार
कुछ हमारे लिए खुश हैं
कुछ दुखी
बंट रहा है परिवार

देश की सीमा के परे
समय के भी परे
शायद फिर मिलें न मिलें
मिलें भी तो
आज की तरह न मिलें
और दूरियों में बंट जाएँ
सारे शिकवे, सारी शिकायतें
और मन के गिले

सब कुछ बदल जाए
जाने-आने की परिधि के पार
कांगारूं के देश में जाने कैसा हो संसार।
</poem>