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14:33, 28 जनवरी 2022 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=रेखा राजवंशी
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|संग्रह=
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<poem>
हवाई जहाज़ में बैठ कर
मन में दुविधा का भाव
भारी मन, भारी पाँव
छोड़कर अपनी ठांव
लो अब मैं चल ही दी
ढूँढने एक नई छाँव
कुछ मिला न मिला
अब किससे क्या गिला
चल दी मैं तय करने
मीलों का फासला
मन की झीलों में
कीलों की चुभन लिए
आखिर मैं चल ही दी
कंगारूओं के देश में ।
</poem>